महिला उद्यमिता की मिसाल उद्योग वर्धिनी
सुलोचना आज तक वो दिन नहीं भूली जब गर्भावस्था में गरम रोटी खाने की चाह के बदले उसे नौकरी से निकाल दिया गया था । गरीबी ने जीना दुश्वार कर रखा था, उस पर बेकारी ने काम की तलाश में दर –दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया । परंतु आज बहुत कुछ बदल गया है, सोलापुर के मेनमार्केट में पद्मा टाकिज के ठीक सामने गणेश मार्केटिंग के नाम से उसकी होल सेल एजेंसी है ,जिसका सालाना टर्न-ओवर लाखों में है । वहीं साधारण सी गृहिणी अल्पना, चन्दनशिवे जिन्होंने कभी थोड़ा घर खर्च निकालने के लिए पापड़ बनाने की ट्रेनिंग ली थी , अब उभरती हुई इंटरप्रन्योर है । अल्पना आज 500 से अधिक महिलाओं को रोजगार दे रही है जानने के लिए क्लिक करें
जीवन को दी नई दिशा
लद्दाख की खूबसूरत वादियों में 2010 में जब बादल फटा तो कई जिंदगियां तबाह हो गईं । नीरज भी उन्हीं में से एक था | इस जलजले ने इस मासूम से उसका सबकुछ छीन लिया था। वो दर्द शायद पूरे जीवन नीरज के चेहरे पर चस्पा रहता, यदि सेवा भारती के कार्यकर्ता उसे दिशा छात्रावास में न लाए होते। किंतु आज नीरज पीछे मुड़कर देखना नहीं चाहता | राष्ट्रीय स्तर तक खो -खो खेल चुके इस होनहार बालक ने 10वीं की गणित में 100 प्रतिशत अंक हासिल किए। नीरज जैसे 36 बच्चों के जीवन को वेलजी विश्राम पोपट दिशा छात्रवास ने नई दिशा दी है। जानने के लिए क्लिक करें
बांबू के सहारे सँवरते जीवन
जैसे डूबते को तिनके का सहारा भी काफी होता है, ठीक वैसे ही कच्छ (गुजरात) में आये हृदय-विदारक भूकंप से ज़मीदोज़ हुए जन-जीवन को सहारा मिला बाम्बू का , महाराष्ट्र में अमरावती जिले के वनवासी क्षेत्र मेलाघाट के लवादा में सम्पूर्ण बाम्बू केंद्र चलाने वाले सुनील देशपांडे व उनकी पत्नी निरूपमा देशपान्डे ने संघ के स्वयंसेवकों के सहयोग से कच्छ मे कुछ ऐसा कर दिखाया, जिसने वनवासी इलाकों में पाए जाने वाले मामूली बाम्बू वृक्ष (बांस) को भूकंप पीड़ितों के लिए संजीवनी बना डाला। जानने के लिए क्लिक करें
किसानों का सच्चा साथी - शेतकारी विकास प्रकल्प
काल के क्रूर प्रहार, ने इनसे इनके अपने छीन लिए थे । वनवासी(जनजाति) क्षेत्रों के इन निर्धन अनाथ बच्चों का बचपन कभी न खत्म होने वाली गुरबत की अंधेरी सुरंग में बीत जाता यदि वात्सल्य मंदिर में उन्हें स्नेह भरी छांव व शिक्षा का उजाला न मिला होता । आज इनकी आँखों में सुनहरे भविष्य के सपने भी हैं , व उनके पूरा होने का विश्वास भी । आईआईटी की आँल इंडिया रैंकिंग में 320 वें नंबर पर रहा व आज एमएनआईटी से इंजीनियरिंग कर रहा, ब्रजेश थारू , हो या फिर एनडीए की तैयारी कर रहा पवन पाल दोनों यहां महज 4 बर्ष की उम्र में आए थे । जानने के लिए क्लिक करें
उम्मीद की नई सुबह- वात्सल्य विद्या मंदिर कानपुर
खेती कभी भी हॅसी- खेल नहीं रही । सदियों से किसान सदा ही फाकाजदा रहा है। छोटे जोत के किसानों के लिए तो खेती से गुजारा कर पाना भी मुश्किल होता है । रही सही कसर मानसून की अनियमितता ,व फसलों पर लगने वाली बीमारीयाँ पूरी कर देती हैं। इस वास्तविकता को महाराष्ट्र के के कोंघारा गांव की सुनीता जाधव से बेहतर कौन समझ सकता है। महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के कोंघारा गांव की इस युवती के किसान पति ने खेती की बदहाली से त्रस्त होकर तब आत्महत्या कर ली थी ,जब इसकी कोख से तीसरी बेटी ने जन्म लिया था। भारत में सैकड़ो किसान साल-दर-साल केवल इसलिए जीवन से मुँह मोड़ लेते हैं कि उनके खेत की फसल परिवार के पेट के जाले और कर्ज के फंदे के बीच का फासला पाटने के लिए कभी पूरी नहीं पड़ती। जानने के लिए क्लिक करें
सपने सच हुए- यमगरवाड़ी -एक अनूठी पहल
हनुमान मंदिर की चौखट पर अपने दो छोटे भाई बहनों के साथ आज की सर्द रात भी रेखा शायद बिना कंबल के ठिठुरते हुए भूखे –पेट गुजार देती ,यदि उसे लेने ...कुछ भले लोग न पहुँचे होते ।महाराष्ट्र के नाँदेड़ जिले में किनवट के नजदीक एक छोटा सा गाँव है पाटोदा....जहाँ रेखा अपने माता-पिता के साथ रहती थी ।
एक आदर्श गांव - मोहद
यहां प्रवेश करते ही लगता है कि, हम किसी विशेष गांव में आ गए हैं। हर-घर के दरवाजे पर ओम व स्वास्तिक की छाप, दीवारों पर जतन से उकेरे गए सुविचार, तो कहीं ब्रम्हांड के रहस्यों को परत दर परत खोलती जानकारियांं, तो कहीं चौपालों पर संस्कृत में अभिवादन करते लोग । वैदिक युग की छाप से नजर आते इस गांव में जब हम हम 50 तरह के उद्योग धंधे ,व गोबर गैस प्लांटस से अल्टरनेटिव एनर्जी ,का उपयोग होते देखते हैं, तो संस्कृति व विकास का अद्भुत समन्वय नजर आता है मोहद में जानने के लिए क्लिक करें
मां यशोदा का पुनर्जन्म विमला कुमावत
26 जनवरी 2003.....62 से ऊपर की विमला कुमावत इसे ही अपना जन्मदिन बताती हैं ........जन्मदिन नहीं पुनर्जन्मदिन ..सच तो ये है कि कई पुराने लोगों की तरह, उन्हें भी अपनी जन्मतारीख याद नहीं है।हां उन्हें वो दिन अच्छी तरह याद है, जब संघ के वरिष्ठ प्रचारक धनप्रकाश त्यागी की प्रेरणा से वे जयपुर में अपने घर के नजदीक की वाल्मिकी बस्ती से कूड़ा बीनने वाले 5 बच्चों को पहली बार अपने घर पढ़ाने के लिए लाईं थीं। जानने के लिए क्लिक करें
दातार में फैला शिक्षा का उजाला
आज समूचे गांव में सुगंधित सुवासित इत्र छिड़का गया था। गांव की आबोहवा में एक अलग ही स्फूर्ति थी। घर-घर में बड़े जतन से साफ-सफाई की गई थी। मानो जैसे कोई उत्सव हो। वक़्त के पन्नो को थोड़ा पीछे पलटें तो अमूमन आम दिनों में इसके बिल्कुल विपरीत इस गांव में लगभग सभी घरों में कच्ची शराब बनायी जाती थी, जिसके कारण यहां वातावरण में एक अजीब सी कसैली दुर्गंध घुली रहती थी। मगर आज तो गांववालों के लिए बेहद खास दिन था। झांसी नगर के एस.एस.पी देवकुमार एंटोनी शहर से 12 किलोमीटर दूर स्थित इस छोटे से गांव दातार में आने वाले थे । जानने के लिए क्लिक करें
और जिंदगी जीत गयी
फ़ोन पर आवाज़ भी साफ़ नहीं आ रही थी फिर कृष्णा महादिक उन बंगाली बाबू को पहचान भी नहीं पा रहे थे । वे बड़े असमंजस में थे की कोई सिलीगुड़ी से विकास चक्रवर्ती अपने बेटे की शादी के लिए उन्हें फ्लाइट का टिकट क्यूंं भेज रहे हैं | बात आखिर 20 साल पुरानी जो थी जब चक्रवर्तीजी अपने बेटे को एक लाइलाज रोग के लिए टाटा मैमोरियल हास्पीटल मुंबई लाए थे तब पूरा परिवार नाना पालकर स्मृति समिति के रुग्ण सेवा सदन में रहा था| जानने के लिए क्लिक करें
मिला संघ का साथ , तो बन गई गणित से बिगड़ी बात
सुदूर चीन बॉर्डर स्थित बर्फ से ढके तवांग से 56 किमी0 दूर, 8000 फीट की दुर्गम ऊँचाई पर एक स्थान है- बोमदिला। महाराष्ट्र से अरूणाचल में संघ प्रचारक बनकर आए, राजेश जी जब यहां के बस अड्डे पर उतरे, उन्हें एक अजीब मंजर दिखा।आसपास, 70 से अधिक किशोरवय लड़के-लड़कियां समूहों में हैरान परेशान बैठे थे। जानने के लिए क्लिक करें
साथी हाथ बढ़ाना
आज वो चाहकर भी अपने आंसू रोक नहीं पा रही थी, दरअसल यह खुशी का अतिरेक था, जो आखों से बह निकला था, थोड़े से पैसों की खातिर 20 बरस पूर्व, पिता द्वारा साहूकार के पास गिरवी रख दी गयी ज़मीन सीता ने आज सूद समेत पूरे 60,000 रुपये चुका कर छुड़वा ली थी। तमिलनाडू के एक छोटे से गांव कडापेरी की सीता का परिवार अब कर्ज की बेड़ियों से मुक्त था। यह कर्ज़ कभी उतर न पाता अगर "श्री मधुरम्मन" स्वयं सहायता समूह की बहनें उसकी मदद को आगे न आतीं । जानने के लिए क्लिक करें
तेरा वैभव अमर रहे मां
रामरति की आंखों से अश्रु कृतज्ञता बनकर बरस रहे थे। पिछले 3 दिनों से खाली चावल उबालकर बच्चों व पति को खिलाने के बाद अक्सर वह खुद भूखे ही सो जाती थी। मजबूरी में पास लगे पेड़ से सहजन तोड़कर बेचने से होने वाली आमदनी से भला तीन बच्चों और सास ससुर का पेट कैसे भरता। लॉकडाउन ने पति के रोजगार के साथ ही घर का दाना पानी भी छीन लिया था। भोपाल में गोविन्दपुरा सेक्टर-सी के नजदीक एक कच्चे मकान में रहने वाले इस परिवार के पास जब सेवा भारती के कार्यकर्ता ईश्वर के दूत की तरह राशन सामग्री लेकर पहुंचे तो रामवती खुशी के मारे रो पड़ी। लाकडाऊन के ढाई माह इस परिवार को अन्न की कमी ना हो इसे सुनिश्चित किया संगठन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता करण सिंह जी ने। जानने के लिए क्लिक करें